Book Name:Mot ke Holnakian Shab-e-Bra'at

ह़ासिल करता हूं । शहनशाहे नुबुव्वत, मुस्त़फ़ा जाने रह़मत, शम्ए़ बज़्मे हिदायत, नौशए बज़्मे जन्नत صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का फ़रमाने जन्नत निशान है : जिस ने मेरी सुन्नत से मह़ब्बत की उस ने मुझ से मह़ब्बत की और जिस ने मुझ से मह़ब्बत की वोह जन्नत में मेरे साथ होगा ।

(مشکاۃ الصابیح،کتاب الایمان،باب الاعتصام بالکتاب والسنۃ،الفصل الثانی،۱/۵۵،حدیث:۱۷۵)

सीना तेरी सुन्नत का मदीना बने आक़ा

जन्नत में पड़ोसी मुझे तुम अपना बनाना

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!        صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

क़ब्रिस्तान की ह़ाज़िरी के मदनी फूल

        मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! आइये ! शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के रिसाले "163 मदनी फूल" से क़ब्रिस्तान की ह़ाज़िरी के मुतअ़ल्लिक़ मदनी फूल सुनते हैं । चुनान्चे,

नबिय्ये करीम, रऊफु़र्रह़ीम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का फ़रमाने अ़ज़ीम है : मैं ने तुम को ज़ियारते क़ुबूर से मन्अ़ किया था लेकिन अब तुम क़ब्रों की ज़ियारत करो क्यूंकि येह दुन्या में बे रग़बती का सबब और आख़िरत की याद दिलाती है । ( اِبن ماجہ،۲ /۲۵۲،حدیث۱۵۷۱)

٭ क़ुबूरे मुस्लिमीन की ज़ियारत सुन्नत और मज़ाराते औलियाए किराम व शुहदाए इ़ज़्ज़ाम की ह़ाज़िरी सआदत बर सआदत और इन्हें ईसाले सवाब मन्दूब (या'नी पसन्दीदा) है । (फ़तावा रज़विय्या मुख़र्रजा, 9 / 532) ٭ (वलिय्युल्लाह के मज़ार शरीफ़ या) किसी भी मुसलमान की क़ब्र की ज़ियारत को जाना चाहे, तो मुस्तह़ब येह है कि पहले अपने मकान पर (ग़ैर मकरूह वक़्त में) दो रक्अ़त नफ़्ल पढ़े, हर रक्अ़त में सूरतुल फ़ातिह़ा के बा'द एक बार आयतुल कुर्सी और तीन बार सूरतुल इख़्लास पढ़े और इस नमाज़ का सवाब साह़िबे क़ब्र को पहुंचाए, अल्लाह पाक उस फ़ौत शुदा बन्दे की क़ब्र में नूर पैदा करेगा और इस (सवाब पहुंचाने वाले) शख़्स को बहुत ज़ियादा सवाब अ़त़ा फ़रमाएगा । (आलमगीरी, 5 / 350) ٭ मज़ार शरीफ़ या क़ब्र की ज़ियारत के लिये जाते हुवा