Book Name:Mot ke Holnakian Shab-e-Bra'at
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! दिन और रात गोया दो सुवारियां हैं जिन पर हम बारी बारी सुवार होते हैं, येह सुवारियां मुसल्सल अपना सफ़र जारी रखे हुवे हैं और हमें मौत की मन्जि़ल पर पहुंचा कर ही दम लेंगी । क्या कभी
हम ने ग़ौर किया कि दिन के गुज़रने और रात के कटने पर हम बहुत ख़ुश होते हैं, ह़ालांकि हमारी ज़िन्दगी का एक दिन एक रात कम हो जाती है और हम मौत के मज़ीद क़रीब हो जाते हैं । हमारी है़सिय्यत तो उस बल्ब की सी है जिस की सारी चकाचौंद और तवानाई पिलास्टिक के एक बटन में छुपी होती है, उस बटन पर पड़ने वाला उंगली का हल्का सा दबाव उस की रौशनियां ख़त्म कर देता है, इसी त़रह़ मौत का वक़्त आने पर हमारा चाको चौबन्द जिस्म इतना बेबस हो जाता है कि हम अपनी मर्ज़ी से हाथ भी नहीं हिला सकते । अगर्चे येह तै़ है कि एक दिन हमें भी मरना है मगर हम नहीं जानते कि मौत आने में कितना वक़्त बाक़ी है ? क्या मा'लूम कि आज का दिन हमारी ज़िन्दगी का आख़िरी दिन या आने वाली रात हमारी ज़िन्दगी की आख़िरी रात हो ! बल्कि हमारे पास तो इस की भी ज़मानत नहीं कि एक के बा'द दूसरा सांस ले सकेंगे या नहीं ? ऐ़न मुमकिन है कि जो सांस हम ले रहे हैं वोही आख़िरी हो, दूसरा सांस लेने की नौबत ही न आए ! क्या ख़बर येह बयान सुनने के दौरान ही ह़ज़रते मलकुल मौत عَلَیْہِ السَّلَام हमारी रूह़ क़ब्ज़ फ़रमा लें । आए दिन येह ख़बरें हमें सुनने को मिलती हैं कि फु़लां अच्छा ख़ासा था, ब ज़ाहिर उन्हें कोई मरज़ भी न था लेकिन अचानक हार्ट फेल हो जाने की वजह से चन्द मिनट के अन्दर अन्दर उन का इन्तिक़ाल हो गया, यूंही किसी भी लम्हे़ हमें इस दुन्या से रुख़्सत होना पड़ सकता है क्यूंकि जो रात क़ब्र में गुज़रनी है वोह बाहर नहीं गुज़र सकती ।
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! हमें भी मरने से पहले मौत की तय्यारी करनी चाहिये, गुनाहों और ग़फ़्लत भरी ज़िन्दगी को छोड़ कर नेकियों की राह