Book Name:Mot ke Holnakian Shab-e-Bra'at

(वसाइले बख़्शिश मुरम्मम, स. 120)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!        صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

        मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! नज़्अ़ (या'नी मौत) के वक़्त इन्सान की रूह़ निकलना इन्तिहाई दुशवार और तक्लीफ़ देह अ़मल है, लिहाज़ा इस दुशवारी से बचने के लिये इस की तय्यारी इन्तिहाई ज़रूरी है ।

          ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम क़ुर्त़ुबी عَلَیْہِ رَحمَۃُ اللّٰہ ِالقَوِی फ़रमाते हैं : मौत बहुत बड़ी मुसीबत है लेकिन इस से बड़ी मुसीबत येह है कि इन्सान मौत से ग़ाफ़िल हो जाए और उस की याद से मुंह फेर ले और उस के लिये आ'माल करना छोड़ दे, बेशक मौत में ग़ौरो फ़िक्र करने वाले और इ़ब्रत पकड़ने वाले के लिये नसीह़त व इ़ब्रत मौजूद है ।  (التذکرۃ باحوال الموتی وامور الآخرۃ ،ص:۸

          मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! याद रखिये ! मौत की हौलनाकियों का सह़ीह़ मा'नों में तसव्वुर ही जान लेवा है । यक़ीनन अ़क़्लमन्द वोही है जो इस जहाने ना पाएदार की दिलचस्पियों से बेगाना हो कर मौत की सख़्तियों और तक्लीफ़ों को पेशे नज़र रखते हुवे इसी की तय्यारी में मश्ग़ूल रहे मगर अफ़्सोस ! हम अ़क़्लमन्दी का सुबूत देने के बजाए मौत से यक्सर ग़ाफ़िल बैठे हैं ।

          ताजदारे रिसालत, शहनशाहे नबुव्वत صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का फ़रमाने इ़ब्रत निशान है : अगर जानवरों को मौत के बारे में इतना इ़ल्म हो जाता जितना तुम जानते हो, तो तुम उन में से किसी को मोटा ताज़ा न खाते ।

(التذکرۃ باحوال الموتی وامور الآخرۃ ،ص:۸

          मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! सुना आप ने कि अगर जानवरों को मौत के मुतअ़ल्लिक़ इतनी मा'लूमात मिल जाएं कि जितनी हमें हैं, तो उन में से कोई भी फ़र्बा न होता । हम जानते हैं कि मौत बरह़क़ है, येह भी मा'लूम है कि एक दिन ज़रूर मरना है, इस बात से भी बा ख़बर हैं कि रूह़ निकलने का वक़्त इन्तिहाई कड़ा होगा और मरने के बा'द दुन्यादारी, रिश्तेदारी और हमारी