Book Name:Har Simt Chaya Noor Hay 12th-Shab-1441

पड़ गईं ٭ आज की रात वोह अ़ज़ीम रात है जिस में ईरान का एक हज़ार साल से जलने वाला मक़ाम ख़ुद बख़ुद बुझ गया ٭ आज की रात वोह अ़ज़ीम रात है जिस में अल्लाह पाक के ह़ुक्म से आसमान और जन्नत के दरवाज़े खोल दिए गए थे ٭ आज की रात वोह अ़ज़ीम रात है जिस में नूर वाले आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ नूर की ख़ैरात बांटने और जहान को अपने नूर से जगमगाने के लिए इस काइनात में तशरीफ़ फ़रमा हुवे

          आइए ! बयान से पेहले आ़शिके़ माहे मीलाद आ़शिके़ माहे रिसालत, अमीरे अहले सुन्नत, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के अ़त़ा कर्दा नारों से इस नूरानी रात का इस्तिक़्बाल करते हैं, हो सके तो मदनी परचम लेहरा लेहरा कर ख़ूब जोशो जज़्बे, मह़ब्बतो अ़क़ीदत के साथ मरह़बा या मुस्त़फ़ा की धूम मचाइए

सरकार की आमद...मरह़बा       सरदार  की  आमद...मरह़बा

प्यारे की आमद...मरह़बा                   अच्छे  की  आमद...मरह़बा

सच्चे की आमद...मरह़बा                   सोहने  की  आमद...मरह़बा

मोहने की आमद...मरह़बा        मुख़्तार  की  आमद...मरह़बा

पुरनूर की आमद...मरह़बा        सरापा नूर की आमद...मरह़बा

आमिना के फूल की आमद...मरह़बा

रसूले मक़्बूल की आमद...मरह़बा

मरह़बा या मुस्त़फ़ा      मरह़बा या मुस्त़फ़ा

मरह़बा या मुस्त़फ़ा      मरह़बा या मुस्त़फ़ा

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

नूरे मुस्त़फ़ा सब से पेहले

          ह़ज़रते जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह अन्सारी رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھُمَا फ़रमाते हैं, मैं ने अ़र्ज़ की : या रसूलल्लाह (صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) ! मेरे मां-बाप ह़ुज़ूर (صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ